प्रियदर्शनी पार्क, मुंबई

प्रियदर्शनी पार्क प्रकृति के सुन्दर नज़ारों के साथ खेलों का संगम कराता है। साउथ मुंबई में स्थित, प्रियदर्शनी पार्क और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के पीछे, यूं तो चार दशकों के संघर्ष और संकल्प की एक रोचक कहानी है। कहते हैं कि सन् 1970 में इस पार्क को रेक्लमैशन लैंड पर बनाया गया था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार इसे दूसरे नरीमन पॉइंट में बदलना चाहती थी और साथ ही 'मुंबई बिल्डर्स लाबी' की भी इस पर नज़र थी। फिर एक जन आंदोलन शुरू हुआ और इस भूमि को खेल के मैदान, पार्क और खेल सुविधाओं के लिए नगर पालिका को सौंप दिया गया। बीएमसी और मलाबार हिल सिटिज़न फोरम के बीच एक समझौता किया गया और देखते ही देखते अरब सागर के किनारे एक खूबसूरत पार्क और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स तैयार हो गया ...समुद्र, आकाश, पार्क और खेल का अद्भुत संगम।  

'प्रकृति का आनंद उठाने के लिए पार्क में बैठने की पर्याप्त सुविधा है' 

जैसे ही प्रियदर्शनी पार्क में मैने प्रवेश किया, मुझे एक शांत वातावरण का एहसास हुआ। मुंबई के भीड़-भाड़ और शोर-शराबे से दूर यह अचानक कहाँ आ गया मैं ? इसी उलझन में था कि सामने प्रियदर्शनी पार्क की फिलोसोफी पढ़ने को मिली। लिखा था... "प्रियदर्शनी पार्क कोई औपचारिक उद्यान नहीं है, यह एक ग्रामीण परिवेश वाला पार्क है। यह समुद्र, प्रकृति और खेलों का समावेश करता है। यह प्रकृति के माध्यम से शांत रहने और ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करने का एक प्रयास है।" इतनी भारी भरकम फिलोसोफी को पढ़ कर, एक पल के लिए तो मैं सहम ही गया। फिर सोचा कि चलो, इस को असल में अनुभव करके देखते हैं। 


मैने सैर के लिए कदम बढ़ाए, तो एक खुले रास्ते ने मेरा स्वागत किया और फिर जैसे ही ताज़ी हवा का एक झोंका मुझ से टकराया, मैं समझ गया कि आज की सुबह सुकून भरी होने वाली है। वॉकिंग एप को ऑन कर, पार्क का दौरा करने के खयाल से मैं आगे बढ़ गया। प्रियदर्शनी पार्क एक शानदार जगह है, जहां घूमने के लिए चौड़े रास्ते तो हैं ही, पर नारियल के पेड़ों के झुंड उसे और मनोरंजक बना देते हैं। इसके इलावा, अपने दोस्तों और यारों के साथ खेलने, गपशप करने और बैठने के लिए कईं स्पॉटस बने हैं। पूरे परिवार के लिए भी यह एक अच्छा पिकनिक स्पॉट है।  

यह वादियाँ, यह फिजायें, बुला रही हैं तुम्हें
  




जहां चार यार मिल जाएं 

सुबह सुबह भीड़ काम लग रही थी, फिर याद आया कि आज शिवरात्रि है, शायद लोग पूजा पाठ में व्यस्त हों। मैं तो खैर आ ही गया हूँ, तो फिर चार पांच चक्कर पार्क के लगा ही दिए। एक उलझन थी, कि मेरी फोटो कौन खींचेगा। अब सामने से आते हुए हर व्यक्ति को मैं ऐसे देखने लगा, कि कहीं यह वो तो नहीं। ऐसी सुन्दर जगह पर अकेले नहीं आना चाहिए था। अगर कोई साथ होता, तो बातें होती थी और कम से कम एक दूसरे की फोटो भी निकाल लेते थे। हिम्मत कर सामने से आते हुए एक साथी से मैने पूछा कि भाईसाब कृपया मेरी एक फोटो खींच दें और मैने अपना मोबाईल आगे बढ़ाया लेकिन यह क्या, उसने तो साफ इंकार कर दिया। फिर आगे घूमते हुए एक चौराहे पर रुका जहां एक विशाल पेड़ अपनी ही धुन में मस्त विराजमान था और लहरा रहा था। वाह यह हुई न बात। फिर अचानक मेरी नज़र एक सीधे-सादे आदमी पर पड़ी जो सामने से आ रहा था, उसे रीक्वेस्ट किया तो वो मान गया और उस लंबे फैले रास्ते पर मेरी एक तस्वीर खींच ही दी। एक उपलब्धि के एहसास से मैं आगे बढ़ चला। 

एक विशाल पेड़ बड़ी शान से अकेले खड़ा था 


उस रास्ते से दाईं ओर मुड़ के देखा तो हरी हरी घास और कतार में लगे हुए नारियल के पेड़ लहलहा रहे थे।  मन तो बहुत कर रहा था, कि इस हरी हरी घास पर थोड़ी देर लेट जाऊँ, पर आसपास का माहौल देख कर अपने मन को कंट्रोल कर लिया। जब और आगे बढ़ा तो समुद्र की तरफ का वही दृशय गोवा की याद ताज़ा कर गया। लेकिन बड़ी बड़ी इमारते जब बीच में दिखी, तो समझ आया कि यह तो अपनी मुंबई ही है। 

ऐसी मुलायम घास पर तो बस लेट ही जाऊं 

नरियाल के पेड़ और समुद्र देख गोवा की याद आ गई  

पेड़ों की वाटिका 

कुछ बातें सरल होती हैं, परंतु आसान नहीं होती। सिम्पल दिखती हैं, पर मुश्किल होती हैं।अब जैसे वज़न कम करने का फार्मूला सिम्पल है ... खाना कम खाओ और एक्सर्साइज़ ज्यादा करो। परंतु यह करना आसान नहीं है। सैर के साथ साथ थोड़ा बहुत जिम करना भी जरूरी है। वो सब मेटाबोलिस्म को ऐक्टिव रखने के लिए। असल में तकनीकी विकास से हमारी दिनचर्या ही बदल गई है। आज हर काम रीमोट, माउस या फिर मोबाईल पर उंगली दबाने से हो जाता है। अब तो राह चलते कोई यह भी नहीं पूछता कि भाईसाब टाइम क्या हुआ। कुछ लोग एक्सर्साइज़ के तौर पर ओपन जिम का उपयोग कर रहे थे।   

ओपन जिम 

ओपन जिम से आगे घूम कर जो सामने देखा तो उस नज़ारे को मैं देखता ही रह गया। विशाल समुद्र दूर दूर तक फैला हुआ और खुले आकाश एवं धरती का मिलन.. क्षितिज निर्माण कर रहा था। कुछ पत्थरों से ही समुद्र के तट को बांधा हुआ है। मैं भी उन पत्थरों पर चढ़ गया और सोचने लगा कि इस जगह एक फोटो तो बनती है। खैर इस बार मेरी किस्मत अच्छी थी, जब नज़र इधर उधर घुमाई तो बाजू में ही कुछ युवा लड़के अपनी सेल्फ़ी ले रहे थे। उनमें से एक को मैने गुजारिश कि तो उसने बराबर ऐंगल बना कर एक फोटो खींच दी। उन पत्थरों से छलांग लगा कर, मैं नीचे उतरा और सामने देखा कि सूर्य देवता अपनी गठरी खोल कर चले आ रहे हैं। सूर्य की किरणें प्रियदर्शनी पार्क पर बिखर रही थीं और इस मनमोहक दृशय को मैने अपने कैमरे में कैद कर लिया।  

धरती, समुद्र और आकाश का मिलन
 
समुद्रतट 


सूर्योदय की किरणों का मनमोहक दृश्य 

द ट्री - स्टैन्लस स्टील की एक प्रतिमा  

प्रियदर्शनी पार्क के साथ लगा हुआ एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है जिसमें एंट्री के लिए, अलग से फीस है... शायद मेम्बर बनना पड़ता है। उसमें ओलंपिक खेलों जैसा एक सिन्थेटिक रनिंग ट्रैक, क्रिकेट, फुटबॉल, ऐरॉबिक्स, टेनिस कोर्ट, योगा, मार्शल आर्ट वगैरह सुविधाएँ हैं। इसके इलावा किकबॉक्सिंग, क्रॉसफिट और स्पा की भी वयवस्था की गई है। सैर करते करते देखा कि कईं लोग रनिंग, लॉंग जंपिंग और योगा कर रहे थे। व्यसक, बच्चे और सीनियर सिटिज़न, पुरुष और महिलायें यानि कि हर तरह के लोग अपनी क्षमता अनुसार पूरे माहौल का लुत्फ उठा रहे थे। 

सैर करने का आनंद और अद्भुत नज़ारे 

ओलंपिक खेलों जैसा रनिंग ट्रैक 

अब समय काफी हो चुका था। पार्क का पूरा चक्कर मैंने चार पाँच बार तो मार ही लिया था, रनिंग एप पर नज़र गई तो 5:25 किलोमीटर का सुहाना सफर तय हो चुका था। अब मुझे नींबू पानी और केले की याद आ गई, जो मैं अपने साथ लाया था। गेट से बाहर निकल, मैं अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया। सड़क पर चहल पहल शुरू थी और मैं समझ गया कि दिन में तो इस जगह गाड़ी पार्क करना मुश्किल हो सकता है। गाड़ी स्टार्ट की और मन ही मन सोचने लगा कि पार्क की फिलासफी सचमुच सही ही है - यह सुन्दर पार्क प्रकृति, समुद्र और खेल का संगम है और नाम भी सही है 'प्रियदर्शनी पार्क'।  

नींबू पानी और केले का टाइम 


आज की उपलब्धि 

चलते चलते एक गीत सुना जाए। 
नदिया चले चले रे धारा, चंदा चले चले रे तारा ,
तुझको चलना होगा, तुझ को चलने होगा। 
फिल्म का नाम 'सफर' है और इसे गाया 'मन्ना डे' ने है। 





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